Hi
friends,
हममें से ज्यादातर लोगों ने कभी ना कभी ये कोशिश ज़रूर की होगी कि रोज़ सुबह जल्दी उठा जाये. हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग कामयाब भी हुए हों, पर अगर majority की बात की जाये तो वो ऐसी आदत डालने में सफल नहीं हो पाते. लेकिन आज जो article मैं आपसे
share कर रहा हूँ इस पढने के बाद आपकी सफलता की probability निश्चित रूप से बढ़ जाएगी. यह
article इस विषय पर दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़े गए लेखों में से एक का Hindi Translation है. इसे
Mr. Steve
Pavlina ने लिखा है .
इसका
title है “How to become an early riser.“. ये बताना चाहूँगा कि इन्ही के द्वारा लिखे गए लेख “20 मिनट में जानें अपने जीवन का उद्देश्य ” का Hindi version इस ब्लॉग पर सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखों में से एक है.
तो आइये जानें कि हम कैसे डाल सकते हैं सुबह जल्दी उठने की आदत.
कैसे डालें सुबह जल्दी उठने की आदत?
It
is well to be up before daybreak, for such habits contribute to health, wealth,
and wisdom.
-Aristotle
-Aristotle
सूर्योदय होने से पहले उठाना अच्छा होता है , ऐसी आदत आपको स्वस्थ , समृद्ध और बुद्धिमान बनती है .
-अरस्तु
सुबह उठने वाले लोग पैदाईशी ऐसे होते हैं
या ऐसा
बना
जा
सकता
है ?
मेरे
case में तो निश्चित रूप से मैं ऐसा बना हूँ .
जब
मैं
बीस
एक
साल
का
था
तब
शायद ही कभी midnight से पहले
बिस्तर
पे
जाता
था .
और
मैं
लगभग
हमेशा
ही
देर
से
सोता
था. और
अक्सर
मेरी
गतिविधियाँ
दोपहर
से
शुरू
होती
थीं .
पर कुछ समय बाद मैं सुबह उठने और successful होने
के
बीच
के
गहरे
सम्बन्ध
को
ignore नहीं कर पाया , अपनी life में भी .
उन
गिने
– चुने
अवसरों
पर
जब
भी मैं
जल्दी
उठा
हूँ
तो
मैंने
पाया
है
कि
मेरी
productivity लगभग हमेशा ही ज्यादा रही है , सिर्फ सुबह के वक़्त ही नहीं बल्कि पूरे दिन . और मुझे खुद अच्छा होने का एहसास भी हुआ है . तो एक proactive goal-achiever होने
के
नाते
मैंने सुबह उठने
की
आदत
डालने
का
फैसला
किया .
मैंने
अपनी
alarm clock 5 am पर सेट कर दी …
— और अगली सुबह मैं दोपहर से just पहले उठा .
ह्म्म्म…………
मैंने फिर कई बार कोशिश की , पर कुछ फायदा नहीं हुआ .मुझे लगा कि शायद मैं सुबह उठने वाली gene के बिना
ही
पैदा
हुआ
हूँ .
जब
भी
मेरा
alarm बजता तो मेरे मन में पहला
ख्याल
यह
आता
कि
मैं
उस
शोर
को
बंद
करूँ
और
सोने
चला
जून .
कई
सालों
तक
मैं
ऐसा
ही
करता
रहा ,
पर
एक
दिन
मेरे
हाथ
एक
sleep research लगी जिससे मैंने जाना कि मैं इस problem को गलत
तरीके
से
solve कर रहा था . और जब मैंने ये ideas apply कीं
तो
मैं
निरंतर
सुबह
उठने में कामयाब होने लगा .
गलत strategy के साथ
सुबह
उठने
की
आदत
डालना
मुश्किल
है
पर
सही
strategy के साथ ऐसा करना अपेक्षाकृत आसान है .
सबसे common गलत strategy है
कि
आप
यह
सोचते
हैं
कि
यदि
सुबह
जल्दी
उठाना
है
तो
बिस्तर
पर
जल्दी
जाना
सही
रहेगा .
तो
आप
देखते
हैं
कि
आप
कितने
घंटे
की
नीद
लेते
हैं ,
और
फिर
सभी
चीजों
को
कुछ
गहनते
पहले
खिसका
देते
हैं .
यदि
आप
अभी
midnight से सुबह 8 बजे तक सोते हैं तो अब आप decide करते हैं
कि
10pm पर सोने जायेंगे और 6am पर उठेंगे . सुनने
में
तर्कसंगत
लगता
है
पर ज्यदातर ये तरीका काम नहीं करता .
ऐसा लगता है कि sleep patterns को ले
के
दो
विचारधाराएं हैं .
एक
है
कि
आप
हर
रोज़
एक
ही
वक़्त
पर
सोइए
और
उठिए .
ये
ऐसा
है
जैसे
कि
दोनों
तरफ
alarm clock लगी हो —आप हर रात उतने ही घंटे सोने का प्रयास करते हैं . आधुनिक समाज में जीने के लिए यह व्यवहारिक लगता है . हमें अपनी योजना का सही अनुमान होना चाहिए . और हमें पर्याप्त आराम भी चाहिए .
दूसरी विचारधारा कहती है कि आप अपने शरीर की ज़रुरत को सुनिए और जब आप थक जायें तो सोने चले जाइये और तब उठिए जब naturally आपकी नीद
टूटे .
इस
approach की जड़ biology में है .
हमारे
शरीर
को
पता
होना
चाहिए
कि
हमें
कितना
rest चाहिए , इसलिए हमें उसे सुनना
चाहिए .
Trial and error से मुझे
पता
चला
कि
दोनों
ही
तरीके
पूरी
तरह
से
उचित
sleep patterns नहीं देते . अगर आप productivity की चिंता
करते
हैं
तो
दोनों
ही
तरीके
गलत
हैं .
ये
हैं
उसके
कारण :
यदि आप निश्चित समय पे सोते हैं तो कभी -कभी आप तब सोने चले जायेंगे जब आपको बहुत नीद ना आ रही हो . यदि आपको सोने में 5 मिनट से ज्यादा लग रहे
हों
तो
इसका
मतलब
है
कि
आपको
अभी
ठीक
से
नीद
नहीं
आ रही
है .
आप
बिस्तर
पर लेटे -लेटे अपना
समय
बर्वाद
कर
रहे
हैं ;
सो
नहीं
रहे
हैं .
एक
और
problem ये है कि आप सोचते हैं कि आपको हर रोज़ उठने ही
घंटे
की
नीद
चाहिए ,
जो
कि
गलत
है .
आपको
हर
दिन
एक
बराबर
नीद
की
ज़रुरत
नहीं
होती .
यदि आप उतना सोते हैं जितना की आपकी body आपसे कहती
है
तो
शायद
आपको
जितना
सोना
चाहिए
उससे
ज्यादा
सोएंगे —कई
cases में कहीं ज्यादा , हर हफ्ते 10-15 घंटे ज्यदा (
एक
पूरे
waking-day के बराबर ) ज्यादातर लोग जो ऐसे सोते हैं वो हर दिन 8+ hrs सोते हैं ,
जो
आमतौर
पर
बहुत
ज्यादा
है .
और
यदि
आप
रोज़
अलग -अलग
समय
पर
उठ
रहे
हैं
तो
आप
सुबह
की
planning सही से नहीं कर पाएंगे . और चूँकि कभी -कभार हमारी natural rhythm घडी से
मैच
नहीं
करती
तो
आप
पायंगे
कि
आपका
सोने
का
समय
आगे
बढ़ता
जा
रहा है .
मेरे लिए दोनों approaches को combine करना
कारगर
साबित
हुआ . ये
बहुत
आसान
है ,
और
बहुत
से
लोग
जो
सुबह
जल्दी
उठते
हैं ,
वो
बिना
जाने
ही
ऐसा
करते
हैं ,
पर
मेरे
लिए
तो
यह
एक
mental-breakthrough था . Solution
ये
था
की
बिस्तर
पर
तब
जाओ
जब
नीद
आ
रही
हो
( तभी
जब
नीद
आ
रही
हो )
और
एक
निश्चित
समय
पर
उठो (
हफ्ते
के
सातों
दिन ). इसलिए मैं
हर
रोज़
एक
ही समय
पर
उठता
हूँ (
in my case 5 am) पर मैं हर रोज़ अलग -अलग समय पर सोने जाता हूँ .
मैं बिस्तर पर तब जाता हूँ जब मुझे बहुत तेज नीद आ रही हो . मेरा sleepiness test ये है
कि
यदि
मैं
कोई
किताब
बिना
ऊँघे
एक -दो
पन्ने
नहीं
पढ़
पाता
हूँ
तो
इसका
मतलब
है
कि
मै
बिस्तर
पर
जाने
के
लिए
तैयार
हूँ .ज्यादातर
मैं
बिस्तर
पे
जाने
के
3 मिनट
के
अन्दर
सो
जाता
हूँ .
मैं
आराम से लेटता हूँ और मुझे तुरंत ही नीद आ जाति है . कभी कभार
मैं
9:30 पे सोने चला जाता हूँ और कई बार midnight तक जगा
रहता
हूँ .
अधिकतर
मैं
10 – 11 pm के बीच सोने चला जाता हूँ .अगर मुझे नीद नहीं
आ रही होती तो मैं तब तक जगा रहता हूँ जब तक मेरी आँखें बंद ना होने लगे .
इस
वक़्त
पढना
एक
बहुत
ही
अच्छी
activity है , क्योंकि यह जानना आसान होता है कि अभी और पढना चाहिए या अब सो जाना चाहिए .
जब हर दिन
मेरा
alarm बजता है तो पहले मैं उसे बंद करता हूँ , कुछ सेकंड्स तक stretch करता हूँ ,
और
उठ
कर
बैठ
जाता
हूँ .
मैं
इसके
बारे
में
सोचता
नहीं .
मैंने
ये
सीखा
है
कि
मैं
उठने
में
जितनी
देर
लगाऊंगा ,उतना
अधिक
chance है कि मैं फिर से सोने की कोशिश करूँगा .इसलिए
एक
बार
alarm बंद हो जाने के बाद मैं अपने दिमाग में ये वार्तालाप नहीं होने देता कि और देर तक सोने के क्या फायदे हैं . यदि मैं सोना भी चाहता हूँ , तो भी मैं तुरंत उठ जाता हूँ .
इस approach को कुछ
दिन
तक
use करने के बाद मैंने पाया कि मेरे sleep patterns एक natural
rhythm में सेट हो गए हैं . अगर किसी रात मुझे बहुत कम नीद मिलती तो अगली रात अपने आप ही मुझे जल्दी नीद आ जाती और मैं ज्यदा सोता . और जब मुझमे खूब energy होती और
मैं
थका
नहीं
होता
तो
कम सोता . मेरी बॉडी ने ये समझ लिया कि कब मुझे सोने के लिए भेजना है क्योंकि उसे पता है कि मैं हमेशा उसी वक़्त
पे
उठूँगा
और
उसमे
कोई
समझौता नहीं किया जा सकता .
इसका एक असर ये हुआ कि मैं अब हर रात लगभग 90 मिनट कम सोता ,पर मुझे feel होता कि
मैंने
पहले
से ज्यादा
रेस्ट
लिया
है .
मैं
अब
जितनी
देर
तक
बिस्तर
पर
होता
करीब
उतने
देर
तक
सो
रहा
होता .
मैंने पढ़ा है कि ज्यादातर अनिद्रा रोगी वो लोग होते हैं जो नीद आने से पहले ही बिस्तर पर चले जाते हैं . यदि आपको नीद ना आ रही हो और ऐसा लगता हो कि आपको जल्द ही नीद नहीं आ जाएगी , तो उठ जाइये और कुछ देर तक जगे रहिये . नीद को तब तक रोकिये जब तक आपकी body ऐसे hormones ना
छोड़ने
लगे
जिससे आपको नीद ना आ जाये.अगर आप तभी bed पे जाएँ
जब
आपको
नीद
आ
रही
हो
और
एक
निश्चित
समय
उठें
तो
आप
insomnia का इलाज कर पाएंगे .पहली रात आप देर तक जागेंगे , पर बिस्तर पर जाते ही आपको
नीद आ जाएगी . .पहले दिन आप थके हुए हो सकते हैं क्योंकि आप देर से
सोये
और
बहुत
जल्दी
उठ
गए ,
पर
आप
पूरे
दिन
काम करते
रहेंगे
और
दूसरी
रात
जल्दी
सोने
चले
जायेंगे .कुछ दिनों बाद
आप
एक
ऐसे
pattern में settle हो जायेंगे जिसमे आप लगभग
एक
ही
समय
बिस्तर
पर
जायंगे
और
तुरंत
सो जायंगे .
इसलिए यदि आप
जल्दी
उठाना
चाहते
हों
तो
( या
अपने
sleep pattern को control करना चाहते
हों ),
तो
इस
try करिए : सोने
तभी
जाइये
जब
आपको
सच -मुच
बहुत
नीद
आ रही
हो
और
हर
दिन
एक
निश्चित
समय
पर उठिए .
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